- मानव के संवेदी अंग (Sensory organ of human):- मानव में सात प्रकार के संवेदी अंग पाए जाते हैं जिसमें 5 दृश्य (Visible), 2 अदृश्य (Invisible) होते हैं |
- 1.आंख
- 2.कान
- 3.जवान
- 4.त्वचा
- 5. नाक
- 6 सेंस
- 7 सेंस
Note :-
6 सेंस :- बिना पांच संवेदी अंगों के लोगों के साथ संचार करना
7 सेंस :- अन्य ग्रह के लोगों के साथ संचार करना
आंख (EYE)
आंख दो प्रकार की होती है |
- (a) संयुक्त आंखें(compound eye)
- (b)सरल आंखें(simple eye)
(a)संयुक्त आंख (compound eye)

- एक ही आंख में बहुत सारी आंखें होती हैं | जिसमें प्रत्येक वस्तु के अलग-अलग हिस्सों का अलग-अलग प्रतिबिंब बनाती हैं | जिसमें हर इसमें हर आंख का अपना लेंस और रेटिना होता है|
- यह कीट मच्छर और orthopoda में पाया जाता है | किटो में दिन के समय प्रतिबिंब बहुत चमकीला बनता है | रात के समय कम चमकीला बनता है | जिससे यह रात्रि चर होते हैं | चमकीला प्रतिबिंब इसलिए बनता है, क्योंकि सारे लेंस से प्रतिबिंब आपस में जुड़ जाते हैं |
- किट प्रकार की ओर आकर्षित नहीं होते हैं | लेकिन उन्हें प्रतिदिन इतना चमकीला बनता है कि उन्हें आगे का रास्ता नहीं दिखाई देता है अगर लाइट बुझा दे दो हुए अपने रास्ते की ओर चलते रहते हैं |
2.सरल आंखें
- सरल आंखों में पृथक प्रतिबिंब बनाने की क्षमता होती है |
- यह सामान्यता बड़े जीव, स्तनधारी, पक्षी, ubhaychar ,सरीसृप, मछलियों में पाए जाते हैं | इनमें एक ही LENS और एक ही RETINA होता है | जो वस्तु का पूर्ण प्रतिबिंब बनाते हैं|
- हमारी आंखों का 80% भाग अंदर होता है |
(A)कॉर्निया (cornea)
- यह पूर्ण रूप से पारदर्शी संरचना होती है | इसको नम बनाए रखना जरूरी होता है | जिसके लिए यहां अश्रुग्रंथियाँ होती है | जिनमें LYSOZYME एंजाइम मिलता है| जो बैक्टीरिया मारने का कार्य करता है |
- कॉर्निया को आसानी से दान दिया जा सकता है| यदि कोई व्यक्ति मर भी जाए तब भी कॉर्निया दान दिया जा सकता है , क्योंकि कॉर्निया में BLOOD CIRCULATION नहीं होता है |
- अश्रु ग्रंथियों का आंतरिक संपर्क नाक से भी होता है | यदि कोई ज्यादा रोता है , तो आंसुओं के साथ नाक भी बहने लगती है |
(B) आइरिश (Iris) –
- यहां आंखों के रंग के लिए जिम्मेदार है | यह पूर्णता अनुवांशिक लक्षण है यह प्रकाश की मात्रा का नियमन करता है | की कितनी मात्रा प्रकाश की प्रवेश करेगी और कितनी नहीं | यह शिथिलता तनाव वाली मूवमेंट करता है |
(C) सिलियरी मांसपेशी (Cilliary muscle) –
- यहां आंख के लेंस की फोकस दूरी का निर्धारण करती है| दूर की वस्तुओं को देखने के लिए फोकस दूरी ज्यादा एवं नजदीक की वस्तु देखने के लिए कम फोकस दूरी की आवश्यकता होती है |
- जब आंखें नजदीक की वस्तुओं को देखती हैं| तो तनाव अवस्था में होती है | और दूर की वस्तु को देखने पर शांत अवस्था में रहती है|
- 25 सेंटीमीटर से कम दूरी में आंखें तनाव में होती हैं 25 सेंटीमीटर देखने के लिए BEST SEE POINT कहा गया है |
(D) लेंस (Lens) –
- मानव की आंखों में उभयनतल प्रकार का लेंस पाया जाता है | इस पर पूर्ण नियंत्रण सिलियरी मांसपेशी का है |
(E) रेटीना (Ratina) –
- रेटिना एक पर्दा होता है|जिस पर वास्तविक रूप से प्रतिबिंब बनता है |

- रेटिना पर प्रतिबिंब हमेशा उल्टा बनता है (मानव) | लेकिन मस्तिष्क में जाने पर यह सीधा प्रतिबिंब बनता है |
- जन्म के कुछ दिनों तक मानव इन प्रतिबिंब को सीधा करना सीखता है | इसलिए चीजों को गौर से देखता है |
- रेटीना दो प्रकार की कोशिकाओं से मिलकर बना होता है –
a. Rod cell
b. Cone cell
(A) RODE CELL :-
- इसमें एक प्रोटीन पाया जाता है जिसका नाम है रोडॉप्सिन । रोडॉप्सिन दो प्रकार के होते हैं
- a. Retinin
- b. Opsin
- रोडॉप्सिन प्रकाश की तीव्रता के लिए उत्तरदाई होता है | रोडॉप्सिन अत्याधिक प्रकाश या कम प्रकाश के प्रतिबिंब को स्पष्ट बनाने में मदद करता है | जब हम ज्यादा प्रकाश में होते हैं , तो रोडॉप्सिन की कम मात्रा की आवश्यकता होती है |और कम प्रकाश में देखने के लिए शरीर अत्यधिक रोडॉप्सिन सीक्रेट करता है |
- उल्लू रात्रि को देख पाता है क्योंकि उसकी आंखों में अत्यधिक मात्रा में रोडॉप्सिन होता है ।
(B) CONE CELL –
- यह रंगों को देखने के लिए उत्तरदाई है | CONE CELL की वस्तुओं की अलग-अलग रंगों को पहचानता है |
- यहां कुछ ही जीवो को दी गई है | मानव, चिंपैंजी जैसे बंदर पक्षी और कीट आदि बाकी जीवो के लिए दुनिया अभी भी BLACK AND WHITE होती है |
- गाय हरी हरी घास के रंग को देख नहीं सकते हैं | लेकिन वे उसकी ओर आकर्षित होते हैं उनकी नमी के कारण |
- सांड बुलफाइट में व्यक्ति कपड़े को हिलाकर सांड को बुलाता है | सांड कपड़े के प्रति संवेदनशील होता है |
- चाहे कपड़े का रंग कुछ भी हो CONE सेल इंद्रधनुष के सात रंगों के प्रति संवेदनशील होते हैं | कौन सेल में सबसे ज्यादा हमारी आंखें पीले रंग के लिए संवेदनशील होती है |
- जिस की तरंग धैर्य 5500 अंगस्ट्रोम होती है | इसलिए इसे मध्य का रंग भी कहते हैं | हमारी आंखें 3800 A to 7800 A की तरंग धैर्य के प्रकाश को देख सकती है |
- इससे ऊपर नीचे नहीं देख पाते हमारी आंखें पाई 5500 A के प्रकाश के लिए सर्वाधिक संवेदनशील होते हैं |
- तरंग धैर्य दो गर्त के बीच का अंतर तरंगधैर्य होता है |
- हरे रंग को देखने पर आंखों में Relaxation आता है |
- इसलिए प्रकृति ने अधिकतर जगह हरा रंग रखा है |
(6)BLIND SPOT
- यहां से तंत्रिका आंखों में प्रवेश करती है | और पूरे रटीना को कवर करती है|
- लेकिन प्रवेश बिंदु ही ब्लाइंड स्पॉट है उनसे रटीना को कवर इसलिए करती है| कि प्रतिबिंब कहीं भी बने उसे मस्तिष्क तक पहुंचा दिया जाए |
- कुछ व्यक्तियों द्वारा जब जहरीली शराब पी जाती है तो वह तंत्रिका पिघल जाती है | जिससे कुछ दिखाई नहीं देता है क्योंकि मस्तिष्क तक प्रतिबिंब नहीं पहुंच पाता है |
आंखों से जुड़ी हुई बीमारियां :-
(A) गुलाबी आंखें (conjuctivetis) :
- यह एक बैक्टीरिया से होने वाली बीमारी है | जो Streptococcus और pneumococcus बैक्टीरिया के कारण होता है |
- दो-तीन दिन तक आंखें लाल गुलाबी होती है | जिससे आंखों में जलन होती है इसके बाद स्वत ही खत्म हो जाती है | इसमें बैक्टीरिया के LIFE – CYCLE कंप्लीट होने पर व्यक्ति ठीक हो जाता है | यह संक्रामक बीमारी है जो हवा पानी छूने इत्यादि से फैल जाती है
SOLUTION – काले चश्मे ।
(B) भेंगापन (Squint) :

- आंखों को घुमाने वाली CILLIARY मांसपेशियां का छोटा या बड़ा हो जाना | जिससे नजरों का तिरछा हो जाना |
(C) मोतियाबिंद (Cataract) :

- किन्हीं कारणवश से आंखों की लेंस पर ऐसा पर्दा पैदा होता है | जो कि अपारदर्शी होता है | जिसके कारण प्रकाश RETINA पर नहीं पहुंच पाता है | निश्चित समय पर उपचार नहीं किया गया तो अंधेपन की समस्या आ जाती है |
(D) रतौंधी :
- इसमें कम प्रकाश ने व्यक्ति को दिखाई नहीं देता है | इसमें रोडॉप्सिन नामक प्रोटीन की कमी आ जाती है |
(E) ग्लाइकोमा- ग्लूकोमा :- Glycoma – Glaucoma:-

- हमारी आंखों में दो कक्षा होते हैं | यदि इन दोनों में किसी का भी दाब बढ़ जाए | तो इस स्थिति में आंखों में देखने की क्षमता खत्म हो जाती है |
(F) निकट दृष्टि दोष (Myopia) :-
- इसमें निकट की वस्तुएं स्पष्ट और दूर की वस्तुएं स्पष्ट दिखाई देती है |
- निवारण : अवतल लेंस
- प्रतिबिंब रेटिना से पहले ही बनता है |
कारण :
a. आंख का गोल बड़ा हो जाता है
b. लेंस की फोकस दूरी का कम हो जाना इसकी पावर हमेशा ऋण आत्मक होगी और इसे डाईआफ्टर मापते है|
1 डाई आफ्टर = 1/F
(G) दूर दृष्टि दोष (HYPERMETROPIA):-
- इसमें व्यक्ति दूर की वस्तुएं स्पष्ट एवं नजदीक की स्पष्ट नहीं दिखाई देती हैं |
- निवारण : उत्तल
इसमें प्रतिबिंब रेटिना के पीछे बनता है |
कारण :-
a. आग का गोला छोटा हो गया हो |
b. लेंस की फोकस दूरी बढ़ गई होगी |
(H) जरा दृष्टि दोष :-
- अधिक उम्र के कारण हमारे लेंस से जुड़ी हुई सैलरी मांस पेशियों की समन्वय क्षमता कम हो जाती है इसमें व्यक्ति को ना तो दूर की वस्तुएं स्पष्ट दिखाई देती हैं और ना ही नजदीकी की वस्तुएं स्पष्ट दिखाई देती है
(I) दृष्टि वैषम्यता(Astagemetism) :-
- कॉर्निया के अनियमितता के कारण व्यक्ति को देखते समय आंखों पर तनाव आ जाता है | इसमें व्यक्ति को ऊर्ध्वाधर एवं क्षेत्रीय वस्तुओं को एक साथ देखने में तकलीफ होती है | इसमें सिलैंडरिकल नंबर के चश्मे बने होते हैं | जो एंगल के चश्मे होते हैं 165 डिग्री 75 डिग्री 180 डिग्री आदि |
(J) रंग वर्णांधता :-
- यह एक जेनेटिक बीमारी है | जिसमें व्यक्ति इन रंगों में विभेद नहीं कर पाते हैं –
- लाल + हरा
- लाल + नीला
- पीला + हरा + लाल
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