Fluids – तरल पदार्थ है जो सामान्य तापमान पर बहने की क्षमता रखते हैं और अपना आकार स्वयं निश्चित नहीं रख पाते अपितु जिस बर्तन में इन्हें रखा जाता है उसी का आकार ग्रहण कर लेते हैं जैसे सभी द्रव गैस तथा वाष्प तरल पदार्थ कहलाते हैं
तरलो का वर्गीकरण :- तरलो का वर्गीकरण विभिन्न प्रकार से हुआ है मुख्यतः तरल तीन प्रकार के होते हैं
- Compressible fluids :- जिन्हें आसानी से दबाया जा सकता है तथा इन पर तापमान परिवर्तन का अधिक प्रभाव पड़ता है compressible fluids कहलाते हैं
- Incompressible fluids :- जिसको आसानी से नहीं दबाया जा सकता है तथा इन पर तापमान परिवर्तन का कम प्रभाव पड़ता है incompressible fluids कहलाते है
- Ideal fluids :- जो अपने किसी भी कण के विस्थापन में कोई प्रतिरोध प्रस्तुत नहीं करते हैं इनको दबाया नहीं जा सकता है ideal fluids कहलाते है
IDEA OF MOMENT OF INERTIA
किसी वस्तु या पिण्ड का वह गुण वह गुण जो घूर्णन गति कर रही वस्तु में घूर्णन अक्ष के सापेक्ष वस्तु की स्थिति में परिवर्तन का विरोध करता है उसे जड़त्व आघूर्ण कहते है।
जब किसी वस्तु पर घूर्णन बल आरोपित किया जाता है तो विराम अवस्था से वस्तु घूर्णन गति करना प्रारंभ कर देती है या पहले से घूर्णन गति कर रही वस्तु के विपरीत दिशा में घूर्णन बल आरोपित करने से वस्तु की घूर्णन गति रुक जाती है।
जब वस्तु की घूर्णन अक्ष के सापेक्ष अवस्था में परिवर्तन होता है तो वस्तु इस अवस्था परिवर्तन का विरोध करती है इसे ही जडत्व आघूर्ण कहा जाता है।
माना एक m द्रव्यमान की वस्तु r त्रिज्या वाले वृत्तीय पथ पर गति कर रहा है इस वृत्तीय पथ पर घूर्णन गति के अक्ष के सापेक्ष वस्तु का जड़त्व आघूर्ण का मान वस्तु के द्रव्यमान व घूर्णन अक्ष से वस्तु तक की दूरी के वर्ग के गुणनफल के बराबर होता है।
अत: वस्तु का जडत्व आघूर्ण का मान निम्न होगा –

I = mr^2(square)
जड़त्व आघूर्ण को I से प्रदर्शित किया जाता है तथा इसका मात्रक ‘किलोग्राम-मीटर2‘ होता है , इसका विमीय सूत्र (विमा) [M^1L^2T^0] होता है।
सूत्र के अनुसार जडत्व आघूर्ण को निम्न प्रकार भी परिभाषित कर सकते है –
“घूर्णन गति कर रहे पिण्ड के द्रव्यमान और पिण्ड की घूर्णन अक्ष से दूरी के वर्ग के गुणनफल को उस वस्तु का इसकी अक्ष के सापेक्ष जड़त्व आघूर्ण कहते है। ”
यदि किसी वस्तु का जडत्व आघूर्ण का मान अधिक है तो इसका अभिप्राय है कि वस्तु अपनी अवस्था में परिवर्तन का अधिक विरोध करती है इसलिए इसकी घूर्णन अवस्था में परिवर्तन करने के लिए बल आघूर्ण का मान भी अधिक आरोपित करना पड़ेगा।
माना कोई वस्तु n कणों से मिलकर बनी हुई है और इन कणों की घूर्णन अक्ष से दूरियाँ क्रमशः r2
, r3 … … …. rn है। तथा इन n कणों का द्रव्यमान का मान क्रमशः m1
, m2 , m3 … … …. mn है जैसा चित्र में दर्शाया गया है –

यह n कणों वाली वस्तु इसकी घूर्णन अक्ष के परित: चक्कर लगा रही है अर्थात वस्तु की घूर्णन गति हो रही है तो वस्तु का इन सभी कणों के कारण कुल जड़त्व आघूर्ण का मान सभी कणों के अलग अलग जडत्व आघूर्ण के योग के बराबर होता है –
DYNAMICS OF RIGID BODY
दृढ़ पिण्ड की परिभाषा : जब किसी पिण्ड के आंतरिक कणों की स्थिति कभी भी परिवर्तित नहीं होती है भले ही उस पर बल आरोपित किया जाए तो ऐसे पिंड को दृढ़ पिण्ड कहते है।
अथवा
जब किसी वस्तु या पिण्ड पर यदि बल आरोपित किया जाये और पिण्ड में इस बल के बावजूद कोई विकृति उत्पन्न नहीं होती है तो उन पिण्डों को दृढ पिंड कहा जाता है।वास्तविकता में कोई भी पिण्ड पूर्ण रूप से दृढ़ नहीं होता है।जिस वस्तु को वास्तविक जीवन में दृढ़ कहा जाता है यदि उन पर बहुत अधिक बल आरोपित किया जाए तो वे विकृत होना प्रारंभ हो जाती है।
उदाहरण : जब एक पुलिया बनाई जाती है तो इसे एक दृढ़ पिण्ड की तरह देखा जाता है क्यूंकि जब इस पर कोई एक आदमी या एक ट्रक चलता है तो इसमें कोई विकृति नहीं दिखाई देती है , लेकिन जब इस पर एक साथ 100 ट्रक चलाये जाए तो इसमें कुछ विकृति आ सकती है भले ही उस विकृति का मान बहुत कम हो और हमें दिखाई न दे लेकिन इस बहुत अधिक बल के कारण इसमें कुछ न कुछ विकृति अवश्य आती है , अत: कोई भी पिण्ड पूर्ण दृढ़ पिंड नहीं माने जाते है।
दृढ़ पिण्ड को निम्न निम्न प्रकार परिभाषित कर सकते है –
“वह पिण्ड जिसके कण बहुत अधिक दृढ़ता के साथ आपस में बंधे रहते है और जब इस पिण्ड पर बाह्य बल आरोपित किया जाता है तो इसके कणों की स्थितियों में कोई परिवर्तन या विस्थापन न हो तो अर्थात विकृति उत्पन्न न हो तो ऐसे पिण्डों को दृढ़ पिण्ड कहा जाता है। ”
दृढ़ पिण्ड की गति (Motion of rigid body)
जब कोई दृढ पिंड गति करता है तो इसकी गति को दृढ़ पिण्ड की गति कहते है।
यह दो प्रकार की होती है –
- स्थानान्तरीय गति (translational motion)
- घूर्णन गति (rotational motion)
प्रत्यास्थता (Elasticity): प्रत्यास्थता पदार्थ का वह गुण है, जिसके कारण वस्तु, उस पर लगाए गए बाहरी बल से उत्पन्न किसी भी प्रकार के परिवर्तन का विरोध करती है तथा जैसे ही बल हटा लिया जाता है, वह अपनी पूर्व अवस्था में वापस आ जाती है.
प्रत्यास्थता की सीमा (Elastic limit): विरुपक बल के परिमाण की वह सीमा जिससे कम बल लगाने पर पदार्थ में प्रत्यास्थता का गुण बना रहता है तथा जिससे अधिक बल लगाने पर पदार्थ का प्रत्यास्थता समाप्त हो जाता है, प्रत्यास्थता की सीमा कहलाती है.
विकृति (strain): किसी तार पर विरूपक बल लगाने पर उसकी प्रांरभिक लंबाई L में वृद्धि l होती है, तो l/L की विक्ति कहते है.
प्रतिबल (stress): प्रति एकांक क्षेत्रफल पर लगाए गए बल को प्रतिबल कहते हैं.
प्ररत्यास्थता का यंग मापांक (young ‘s modulus of elasticity): प्रतिबल और विकृति के अनुपात को तार के पदार्थ की प्रत्यास्थता का यंग मापांक कहते हैं.
हुक का नियम (hooke’s law): प्रत्यास्थता की सीमा में किसी बिंदु में उत्पन्न विकृति उस पर लगाए गए प्रतिबल के अनुक्रमानुपाती होती है.
यानी कि प्रतिबल x विकृति या , प्रतिबल/विकृति = E (एक नियतांक) = प्रत्यास्थता का गुणांक
प्रत्यास्थता गुणांक (E) का मान भिन्न-भिन्न होता है. इसका S.I. मात्रक न्यूटन मीटर ^-2 होता है. जिसे पास्कल कहते हैं.
यंग का प्रत्यास्थता गुणांक, Y = अनुदैधर्य प्रतिबल/अनुदैधर्य विकृति