टिहरी रियासत में प्रशासन
राज्य ! | |
ठाण ! | ठाणदार |
परगना ! | सुपरवाइजर |
पट्टी ! | पटवारी प्रशासकीय पुलिस व्यवस्था |
गांव ! | पधान , पधानचारी (सर्वश्रेष्ठ खेती की भूमि पधान को देते थे |) |
राजा ! |
मुख्तार ! |
महा निरीक्षक दफ्तरी ! |
परगना दफ्तरी ! |
परगने का सैन्य अधिकारी |
फौजदार |
गोलदार |
थोकदार |
पधान |
मोलाराम – गढ़ राजवंश पुस्तक
गढ़वाल कलम – चित्रकार की शैली
टिहरी का प्रशासन परंपराओं एवं आदर्शों पर आधारित था | राजा प्रशासन का सर्वोच्च अधिकारी होता था | एवं वह कार्यपालिका एवं न्यायपालिका का प्रमुख होता था | राज्य में स्थित सभी प्राकृतिक जैसे – वन , भूमि , जल , खनिज संपदा आदि पर राजा का अधिकार होता था | किंतु राजा निरकुंश नहीं था |
राजा को प्रशासनिक सहायता देने के लिए एक मंत्री परिषद होती थी | राजा इसी मंत्रिपरिषद की सलाह पर कार्य करता था |
गढ़देश का प्रशासनिक विभाजन निम्न प्रकार से था –
राज्य को चार ठाण में बांटा गया था | इसका प्रमुख ठाणदार कहलाता था | इन ठाणो को परगने में विभाजित किया गया था | तथा परगने का अधिकारी सुपरवाइजर कहलाता था |
परगने को पट्टियों में बाँटा गया था | जिसका प्रमुख पटवारी कहलाता था | पटवारी इस स्तर पर न केवल राजस्व अधिकारी था , बल्कि पटवारी को पुलिस व्यवस्था भी सौंपी गई थी | इसके अधीन कई गांव होते थे | एवं इन गांव में शांति व्यवस्था बनाए रखना भी पटवारी का दायित्व था |
प्रशासन की सबसे छोटी इकाई गांव थी | गांव का प्रमुख पधान कहलाता था | इस का प्रमुख कार्य में राजस्व एकत्र करना था | एवं उसे शाही राजकोष में जमा करना था |
राजा के पश्चात मंत्री परिषद का सबसे प्रमुख मंत्री मुख्तार कहलाता था | इसकी प्रशासन में महत्वपूर्ण भूमिका होती थी | कभी-कभी जब कोई राजा दुर्लभ होता था , तो मुख्तार सारा प्रशासन हाथों में ले लेता था | एवं इसका भरपूर इस्तेमाल करता था |
राजकीय कार्यालय का महानिरीक्षक (कार्यालय राजधानी में )दफ्तरी होता था | इसका कार्यालय राजधानी में होता था | इसकी सहायता प्रदान करने के लिए प्रत्येक परगने में एक परगना दफ्तरी होता था |
परगना स्तर के सैन्य अधिकारी को फौजदार कहा जाता था | तथा राजधानी की आंतरिक सुरक्षा से संबंधित अधिकारी को गोलदार कहा जाता था | इसके अपने सैनिक होते थे | तथा उनकी नियुक्ति वह स्वयं करता था एवं राजधानी की पूरी आंतरिक सुरक्षा की जिम्मेदारी इसी की होती थी |
परगना स्तर पर राजस्व वसूलने वाले अधिकारी को थोकदार कहा जाता था | प्राचीन संभ्रांत परिवारों के प्रतिनिधि के रूप में नेगी मंत्रिमंडल में शामिल किया जाता था |
गांव के पधान नियुक्ति थोकदार द्वारा होती थी | एवं पधान का प्रमुख दायित्व गांव में राजस्व एकत्रण करना था | पधान का पद परंपरागत नहीं होता था |
राजा द्वारा जिन लोगों को भूमि वेतन स्वरूप दी जाती थी | उन्हें थातवान कहा जाता था , एवं थातवान की भूमि पर जो कृषि कार्य करते थे | उन्हें मौसेरदार कहा जाता था |
मौसेरदार से भूमि लेकर उसकी भूमि पर कृषि करने वाले किसान को खायकर कहा जाता था | खायकर नगद या अनाज दोनों के रूप में कर देते थे |
खायकर से भूमि लेकर के कृषि करने वाले व्यक्ति को सिरतान कहा जाता था | तथा यह केवल नगद कर अदा करते थे |
टिहरी रियासत में कला और साहित्य
पंवार वंश के राजाओं ने कला और साहित्य के क्षेत्र में विशेष योगदान दिया है | इन्होंने संस्कृत और हिंदी के कवियों को आश्रय दिया | यद्यपि इस काल में हमें कोई अधिक ग्रन्थ देखने को नहीं मिलते हैं | किंतु कई तथ्यों से यह प्रमाणित हो जाता है | कि पंवार वंश राजाओं ने कई विद्वानों को संरक्षण किया , एवं उन्हें पुरस्कृत किया |
सुदर्शन शाह
सुदर्शन शाह स्वयं एक विद्वान थे | उन्होंने सभासार नामक ग्रंथ की रचना की थी | इसके अलावा पंवारों ने बुद्धि विलास , भरत कवि मेधाकर शास्त्री एवं मोला राम को संरक्षण प्रदान किया था|
गढ़ राजाओं को सर्वाधिक ख्याति चित्रकला को आश्रय देने से मिली | श्याम तोमर तथा उनके वंशजों ने राजपूत शैली से एक शाखा का विकास किया | जिसे गढ़वाल कलम के नाम से जाना गया |
पंवारों की चित्रकला में मुगलकालीन शैली का स्पष्ट प्रभाव देखने को मिलता है | इस शैली के प्रमुख चित्रकार श्यामदास (पिता) तथा कहेर दास (पुत्र) थे|
मंगत राम के पुत्र मोलाराम ने मुगल शैली की शिक्षा अपने पिता से ली थी | इसलिए मोलाराम के प्रारंभिक चित्रकला में मुगल शैली का प्रभाव देखने को मिलता है | किंतु इन्होंने बाद में गढ़वाली में चित्र बनाए थे |
मोलाराम के चित्रों को प्रसिद्धि दिलाने का श्रेय बैरिस्टर मुकुन्दी लाल को जाता है | इन्होंने मोलाराम के चित्रो को गढ़वाल पेंटिंग्स के नाम से प्रसिद्धि दिलाई | मोलाराम ने गढ़ राजवंश नामक पुस्तक लिखी | मोलाराम के पश्चात महाराजा सुदर्शन शाह के समय चीतू और मागणु दो चित्रकार हुए थे |