चंदवंश 12 वीं 18 वीं सदी
कत्यूरियों के पश्चात कुमाऊं क्षेत्र में चंद वंश का उद्भव हुआ |
चंद वंशों ने न केवल कुमाऊं क्षेत्र को राजनैतिक एकता के सूत्र में बांधा , बल्कि वहां पर कला , सभ्यता एवं संस्कृति के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया |
कुमाऊं में इस वंश के संस्थापक – सोमचंद था ।
1 :- सोमचंद
सोमचंद ने चंपावत को अपनी राजधानी बनाया | एवं चंपावत के आसपास के क्षेत्र को जीतकर अपने साम्राज्य का विस्तार करने की नीति अपनाई |
इसने चंपावत में राजबुंगा किले का निर्माण करवाया था |
2 :- आत्म चंद
यह सोमचंद की कत्यूर रानी से उत्पन्न पुत्र था |
भीष्मचंद शासक द्वारा अपनी राजधानी चंपावत से हटाकर अल्मोड़ा बनाई |
अल्मोड़ा में इन्होंने खगमरा किले का निर्माण कराया |
3 :- रूपचंद
रूपचंद अकबर का समकालीन था |
रूपचंद ने अल्मोड़ा में मल्लामहल का निर्माण करवाया |
इसने एक सामाजिक और राजनैतिक व्यवस्था स्थापित करने का प्रयास किया|
रूपचंद ने “धर्म निर्णय” नामक पुस्तक लिखी | इसने पक्षी आखेट से संबंधित एक पुस्तक “शैयनिक शास्त्र” की रचना की थी |
4 :- लक्ष्मीचंद
लक्ष्मीचंद ने बैजनाथ मंदिर का पुनर्निर्माण करवाया था |
5 :- बाज बहादुर
बाज बहादुर के समय ‘चौरासी माल परगने’ पर राजपूतों का अधिकार था | इस परगने से चंद वंशीय राजाओं को अत्यधिक आय होती थी | फलस्वरूप बाज बहादुर माल परगने को लेकर मुगल बादशाह शाहजहां से मिला , एवं शाहजहां ने इसे जमीदार एवं बहादुर की उपाधि दी|
इसने बाजपुर नामक नगर बसाया | एवं मनीलागढ़ के कत्यूरियों पर आक्रमण किया | कत्यूरियों ने भागकर पूर्वी गढ़वाल को लूटना प्रारंभ किया | इनको रोकने के लिए इस क्षेत्र के थोकदार गोला रावत , भूप सिंह (भाई तीलू रौतेली) ने मोर्चा संभाला | किंतु भूपसिंह की अपने दो पुत्रों के साथ मृत्यु हो गई |
फलस्वरूप इनकी पुत्री वीरांगना तीलू रौतेली ने मोर्चा संभाला| तथा कत्यूरियों के साथ लगभग 7 बार युद्ध किए | एवं चौन्दकोट , पूर्वी अल्मोड़ा पर अपना अधिकार किया | किंतु नयार नदी में नहाते समय कत्यूरियों द्वारा तीलू रौतेली हत्या हो गई | तीलू रौतेली को “गढ़वाल की लक्ष्मीबाई” कहा जाता है | तीलू रौतेली की घोड़ी का नाम बिंदुली था |
बाज बहादुर ने मानसरोवर यात्रियों को भूमि , भोजन एवं वस्त्र दिया | इसने ‘हथिया देवाल मंदिर’ का निर्माण किया , यह एक एकाश्म मंदिर (एक पत्थर से बना) है | इसे “कुमाऊँ का कैलाश मंदिर” भी कहा जाता है |
6 :- अद्योतचंद
इस समय नेपाल के क्षेत्र को डोटी कहा जाता था | एवं इसने इन की राजधानी अजमेर गढ़ को लूटा था |
7 :- ज्ञानचंद
ज्ञानचंद ने अल्मोड़ा में नंदा देवी मंदिर का निर्माण करवाया | (नैना देवी) |
8 :- जगत चंद
जगत चंद कुमाऊँ का सबसे लोकप्रिय शासक था | इसके शासन में जनता न केवल सुखी थी | बल्कि व्यापार , वाणिज्य भी चरम पर था | इसीलिए जगत चंद के शासनकाल को कुमाऊं में चंद वंश का स्वर्णिम काल कहा जाता है | जगतचन्द ने गढनरेश फतेशाह को परास्त किया था |चेचक के कारण जगत चंद की मृत्यु हो गयी ।
9 :- देवी चंद
जगत चंद की मृत्यु के पश्चात उनका पुत्र देवीचंद शासक बना | जिसे विरासत में भरा पूरा राजकोष मिला था | किंतु यह सदैव अपने चापलूस सरदारों से घिरा होता था | जिन्होंने इसे कुमाऊँ का विक्रमादित्य होने का भ्रम दिया | इसकी अयोग्यता एवं अदूरदर्शिता के कारण कुछ समय पश्चात ही राजकोष खाली हो गया |
इसकी गलत नीतियों के कारण कुछ इतिहासकारों ने इसे कुमाऊँ का मोहम्मद बिन तुगलक कहा है |
10 :- कल्याण चंद
चंद वंश के राजकोष की हालत इतनी खराब हो गई थी , कि कल्याण चंद को मुहम्मद शाह रंगीला से मिलने हेतु , नजराना पेश करने के लिए जागेश्वर मंदिर समूह से ऋण लेना पड़ा था | कल्याण चंद चतुर्थ के समय कवि शिव ने “कल्याणद्रोदयम” नामक पुस्तक लिखी |
इसके पश्चात कुमाऊँ राजनैतिक अस्थिरता का शिकार रहा | बड़े-बड़े सरदारों के उद्भव , गुटबंदी एवं दरबारी षडयंत्रो ने प्रशासन को कमजोर किया |
वहीं नेपाल अपनी सीमा विस्तार कर रहा था | कुमाऊं में लाल सिंह ने अपने पुत्र महेंद्र सिंह को महेंद्र चंद के नाम से गद्दी पर बैठाया | 1790 में अमर सिंह थापा एवं हस्तीदल चौतरिया के नेतृत्व में एक नेपाली सेना कुमाऊं की ओर बढ़ी | नेपाली सेना को दो भागों में बांटा गया , एवं सेना के एक भाग ने पिथौरागढ़ सोरघाटी में प्रवेश किया | जबकि एक सेना का भाग विसुंग चंपावत को जीतते हुए राजधानी अल्मोड़ा की ओर बढ़ा | हवालाबाग के युद्ध में चंद शासक महेंद्र चंद परास्त हुआ | एवं कुमाऊं पर गोरखाओं का अधिकार हो गया |
गोरखाओं के कुमाऊँ पर आक्रमण के समय हर्ष देव जोशी ने गोरखाओं की मदद की थी | कुमाऊँ के इतिहास में हर्षदेव जोशी को “किंग मेकर” कहा जाता है इसे कुमाऊँ का ‘चाणक्य’ भी कहा जाता है |
नोट – शिवादत्त / शिवानंद जोशी ने अल्मोड़ा में बिनसार महादेव मंदिर का निर्माण कराया|
नोट – चंद शासक शैव धर्म के अनुयायी थे| इनका राज चिह्न गाय थी एवं मोहरों पर तलवार की ठूंठ का प्रयोग होता था |
चंदों का प्रशासन
कत्यूरियों के पश्चात कुमाऊं क्षेत्र पर लंबे समय तक चंदवंशीय राजाओं ने शासन किया | इन्होंने न केवल कुमाऊं में अपनी सत्ता स्थापित करके , उसे एक राजनैतिक स्वरूप प्रदान किया | बल्कि वहां पर सामाजिक व राजनैतिक व्यवस्था को कायम करके क्षेत्र में संस्कृति एवं समाज के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका प्रदान की|
इनके द्वारा चलाए गए परंपरा एवं प्रथाएं आज भी वहां के ग्रामीण क्षेत्रों में प्रचलित है | जो सांस्कृतिक धरोहर के रूप में अपना स्थान बनाए हुए हैं | चंद के प्रशासन में पूर्ववर्ती तथा समकालीन राज्य के प्रशासन का प्रभाव देखने को मिलता है | क्योंकि चंद शासक से पूर्व क्षेत्र में कत्यूरी वंश का प्रशासन चंद के प्रशासन का भी आधार बना |
इसके अतिरिक्त चंदो का मुगल शासकों से भी संबंध रहा | इसलिए मुगलों के प्रशासन का भी इनके प्रशासन पर स्पष्ट प्रभाव देखने को मिलता है| नेपाल से संबंध होने के कारण नेपाली शब्दों का प्रयोग किया गया है|
इस प्रकार अभी कह सकते हैं , कि चंदों का प्रशासन का केंद्र बिंदु “राजा” होता था | तथा राजा ही सर्वोच्च न्यायाधीश एवं प्रधान सेनापति होता था |
चंद राजाओं द्वारा देव की उपाधि ली जाती थी | जो प्रमाणित करता था करता है , कि राजा को पृथ्वी पर देवताओं का प्रतिनिधित्व समझा जाता था |
राजकीय कार्यों में राजा को सहायता देने के लिए राजा अपना एक युवराज को घोषित करता था | युवराजों द्वारा कुंवर एवं गुसाईं की उपाधि ली जाती थी |भूमि दान देने का अधिकार राजा एवं युवराज को ही प्राप्त होता था | राजा को प्रशासनिक सहायता देने के लिए मंत्रिपरिषद होती थी |यह एक सलाहकार संस्था थी | इसने माहरा एवं फर्त्याल जैसी जातियों का प्रभुत्व था | दीवान पद महत्वपूर्ण एवं प्रभावी होता था , यह जोशी जाति के लोगों को दिया जाता था |
साम्राज्य को प्रांत में , प्रांत को देश में ( मल्ल देश, डोटी देश, माल देश ) , देश को परगने में , परगने को गर्ख ( पट्टी) में बांधा गया था | गर्ख का प्रमुख अधिकारी नेगी होता था | जो कि जाति नहीं पद का नाम था | प्रशासन की सबसे छोटी इकाई गांव थी | इसका प्रमुख सयाणा / बूढा कहलाता था | तथा इसकी पंचायत को न्याय करने का भी अधिकार था | सबसे बड़ा न्यायाधीश राजा होता था | एवं इसके अधीन विष्ठाली एवं न्यौवली नामक कचरियाँ थी | एवं पंचवीसी या चारथान नामक न्यायालय का भी उल्लेख मिलता है |
चंद वंश राजा शैव धर्म के उपासक थे | चंपावत में नाग मंदिर , अल्मोड़ा में जागेश्वर मंदिर , द्वारहाट मंदिर , इस तथ्य को प्रमाणित करता है |
ग्रामीण एवं समाज द्वारा एवं घुरड़िया देवता की पूजा की जाती थी , घुरड़िया देवता ही ग्वाला देवता थे |
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