कुणिंद वंश
उत्तराखंड के मध्य हिमालय एवं पर्वतीय हिमालय में मौर्य वंश के समकालीन कुणिंद ने अपनी सत्ता स्थापित की। यह संभवत उत्तराखंड का पहला राजनैतिक वंश था |
इस वंश का सबसे शक्तिशाली राजा अमोघ भूति था | इसकी रजत एवं ताम्र मुद्राए प्राप्त हुई है , जिनसे इनकी उपाधि “राजः कुणिंदस अमोघ भूति महाराजसः” ऐसा लिखा है ।
मौर्योत्तर काल में उत्तराखंड के तराई भाग एवं मध्य हिमालय वाले भूभाग पर कुषाणो का अधिकार हो गया । किंतु माना जाता है कि इस समय भी हिमालय के पर्वतीय भाग पर कुणिंदों का अधिकार था ।
उसके पश्चात कुषाण धीरे-धीरे उत्तर भारत में कुषाणो की शक्ति क्षीण होने लगी, एवं फिर से कुणिंदों का अधिकार मध्य हिमालय एवं तराई के कुछ भागों पर हो गया ।
किंतु अब भी तराई का कुछ हिस्सा गुप्तों के अधीन था उसके पश्चात इस क्षेत्र में यौद्धेय वंश (गणतंत्र) ,प्रवर्तित कुणिंद वंश (बचे) युग्शैल वंश आदि छोटे-छोटे वंशो ने शासन किया ।
गुप्तोत्तर काल में यादव वंश तथा नागवंश ने इस क्षेत्र पर अपना शासन स्थापित किया ।
हर्षवर्धन काल में नागों ने कुणिंदों को समाप्त करके अपनी सत्ता स्थापित की इसका प्रमाण इस क्षेत्र में बेनीनाग, धौलीनाग ,कालीनाग आदि की उपस्थिति से प्रमाणित होता है|
इनमें पिथौरागढ़ का बेनीनाग मंदिर प्रसिद्ध है यहां पर नाग शक्ति का पतन करने का श्रेय कन्नौज के मौखरी वंश को जाता है |
हर्षवर्धन के पश्चात यहां पर छोटे-छोटे कोटो (राज्यों) की स्थापना हुई इनमें ब्रह्मपुर ,शत्रुघ्न , गोविषाण प्रमुख थे|
इसी ब्रह्मपुर राज्य के अवशेषों पर कालांतर में उत्तराखंड के पहले ऐतिहासिक राजवंश कत्यूरी वंश की नींव पड़ी