उत्तराखंड में हुए प्रमुख वन आंदोलन संछिप्त में
कुली बेगार
ब्रिटिश काल में कुली बेगार प्रथा पर प्रचलन में थी | इस प्रथा के अनुसार – जब अंग्रेज एक स्थान से दूसरे स्थान तक जाते थे | तो रास्ते में पड़ने वाले गांव के लोगों का यह दायित्व होता था | कि वे उनके सामान एवं अंग्रेजों को अपने गांव से दूसरे गांव की सीमा तक ले जाएंगे | तथा इसके संबंध में रजिस्टर तैयार किए गए थे |
सामान ढोने वाले ग्रामीणों को उसके बदले कोई धनराशि नहीं मिलती थी | इस प्रथा के खिलाफ बागेश्वर में 1921 में एक विशाल जनसैलाब इकट्ठा हुआ | तथा इनके रजिस्टर सरयू नदी में बहा दिए गए
डोला पालकी आंदोलन
यह गढ़वाल और कुमाऊं में फैली एक कुप्रथा थी | इस कुप्रथा के तहत निम्न जातिय लोगों को विवाह के अवसर पर भी डोला पालकी में बैठने का अधिकार नहीं था |
इस प्रथा के बारे में जब गांधी जी को पता चला तो गांधीजी ने कहा था | कि ऐसा समाज जिसमें ऐसी बुराइयां व्याप्त है उसके लिए स्वतंत्रता का कोई औचित्य नहीं है |
डोला पालकी आंदोलन के प्रेणता जयानंद भारती थे | एवं इन्हीं के प्रयासों से यह प्रथा समाप्त हुई थी ।
पाणी राखो आंदोलन
सरकार की वन नीति के कारण जंगलों का अथाह रूप से कटान हो रहा था | जिसके कारण पर्यावरण असंतुलन के साथ साथ पेयजल समस्या भी बढ़ने लगी थी |
फलस्वरूप पौड़ी के उफरैंखाल में सच्चिदानंद भारती द्वारा पाणी राखो आंदोलन चलाया गया | तथा जल स्रोतों को संरक्षित करने का प्रयास किया गया था |
कोटा खुर्द आंदोलन
आंदोलन सरकार द्वारा बनाए गए , नए भूमि तथा वन कानूनो के विरोध में था जिसके तहत स्थानीय लोगों की जमीन को जंगलात की भूमि में तब्दील किया जा रहा था |
इन सीलिंग कानून के खिलाफ तराई क्षेत्रों में किसानों एवं श्रमिकों को भूमि उपलब्ध कराने के लिए | एक आंदोलन चलाया गया था |
कनकटा बैल बनाम भ्रष्टाचार
अल्मोड़ा में एक बैल के ऋण लेने के लिए दो बार कान काटे गए | और दो बार ऋण लिया गया तथा दो बार बीमा की राशि हड़प कर ली गई |
फलस्वरुप भ्रष्ट अधिकारियों के इस भ्रष्टाचार उजागर करने के लिए | इस बैल को राज्यों के विभिन्न क्षेत्रों में घुमाया गया तथा अधिकारियों के भ्रष्टाचार का पर्दाफाश हुआ |
मैती आंदोलन
मैती शब्द का अर्थ मायका होता है। इस अनूठे आंदोलन सा जनक कल्याण सिंह रावत के मन में 1996 में उपजा मस विचार इतना विस्तार पा लेगा इसकी उन्होंने कल्पना भी नहीं की थी। ग्वालदम इण्टर कॉलेज की छात्राओ को वनो के प्रति देखभाली करते हुए देख के रावत जी ने महसूर किया की पर्यावराण संरक्षण में युवतियां बेहतर ढंग से काम कर सकती हैं. इसके बाद ही मैती आंदोलन ने आकार लेना शुरू किया.
इस आंदोलन के तहत आज वर वधु द्वारा विवाह समारोह के दौरान पौधा रोपने और इसके बाद मायके पक्ष इसकी देखभाल की ज़िम्मेदारी सौंप देने की परंपरा है। गाँव की सारी युवतियां मिलकर मैती आंदोलन के लिए एक अध्यक्ष चुनती हैं जिसे दीदी का दर्जा दिया जाता है.
रक्षासूत्र आंदोलन
वृक्ष पर रक्षासूत्र बांधकर उसकी रक्षा का संकल्प लेने सम्बन्धी ये आंदोलन 1994 में टिहरी के भिलंगना क्षेत्र से शुरू हुआ था। इस आंदोलन का कारण ऊँचे स्थान पर वृक्षों के काटने पर लगे प्रतिबन्ध के हटने पर ये आंदोलन शुरू हुआ और लोगो ने काटने वाले चिन्हित वृक्षों पर राक्षसूत्र बांधकर उसे बचने का संकल्प लिया।
इस के कारण आज भी रयाला जंगल के वृक्ष चिन्हित के बाद भी सुरक्षित हैं.
इस आंदोलन का नारा था -” ऊँचाई पर पेड़ रहेंगे, नदी ग्लेश्यिर टिके रहेंगे , जंगल बचेगा देश बचेगा “
पाणी राखो आंदोलन
उफरैखाल गाँव के युवाओ द्वारा पानी की कमी को दूर करने के लिए ये आंदोलन काफी सफल रहा। इस आंदोलन के सूत्रधार गाँव के शिक्षक सच्चिदानंद भारती ने दूधतौली लोक विकास संस्थान का गठन क्र इस कशेरा में जनजागरण और सरकारी अधिकारियो ु दवाब बनाकर वनो की अंधाधुंध कटाई को रुकवाया।
रवाई आंदोलन
टिहरी राज्य में राजा नरेन्द्रशाह के समय एक नया वन क़ानून आया जिसके तहत ये व्यवस्था थी की किसानो की भूमि को भी वन भूमि में शामिल किया गया है। इस कानून के खिलाफ 30 मई1930 को दीवान चक्रधर जुयाल के आज्ञा से सेना ने आंदोलनकारियों पर गोली चला दी जिससे सेंकडो किसान शहीद हो गये थे। आज भी इस क्षेत्र में ३० मई को शहीद दिवस मनाया जाता हैं.
चिपको आंदोलन
वनो की अंधाधुंध कटाई रोकने के लिए 1974 में चमकी ज़िले में गोपेश्वर नामक स्थान पर एक 23 वर्षीय विधवा महिला गौरा देवी द्वारा की गयी थी।
इस आंदोलन का नारा था “क्या है इस जंगल का उपकार , मिटटी , पानी और बयार , ज़िंदा रहने के आधार ” इस आंदोलन को शिखर पर पहुंचने का कार्य सुंदरलाल बहुगुणा ने लिया।
झपटो छीनो आंदोलन
रेणी , लाता , तोलमा गाँव की जनता ने वनो पर परम्परागत हक़ बहाल करने तथा नंदा देवी राष्ट्रिय पार्क का प्रबंध ग्रामीणों को सौंपने की मांग को लेकर 21 जून 1998 को लाता गाँव में धरना प्रारम्भ किया और लोग अपने पालतू जानवरो के साथ नंदादेवो राष्ट्रीय उध्यान में घुस गए इसीलिए इस आंदोलन का नाम झपटो छीनो रखा गया।