उत्तराखंड राज्य के गठन / पृथक राज्य आंदोलन के कारण
भौगोलिक एवं सांस्कृतिक विषमता |
प्रशासनिक शिथिलता एवं अलगाव |
अनअद्यौगिकरण एवं पलायन |
प्राकृतिक आपदाएं |
सामरिक महत्व |
प्राकृतिक सौंदर्य एवं अपनी विशिष्ट भौगोलिकता के कारण उत्तराखंड पूरे देश में अलग स्थान रखता है | संगोली संधि के पश्चात इस क्षेत्र पर अंग्रेजों का अधिकार हो गया |
अंग्रेजों ने इस क्षेत्र के प्राकृतिक संपदा का अनियंत्रित और अनियमित रूप से विदोहन करना प्रारंभ किया | और स्वतंत्रता के बाद भी लगातार यह चलता रहा | इस हिमालयी क्षेत्र के लिए कोई नीति या नियोजन ना होने के कारण पर्यावरण संकट जैसी समस्याएं खड़ी हो गई |
वहीं सरकारी शिथिलता रवैया के कारण क्षेत्र विकास से भी दूर रहा फलस्वरूप स्थानीय जनप्रतिनिधियों ने क्षेत्रीय समस्याओं एवं विकास के अभाव को देखते हुए , उत्तराखंड राज्य की मांग को एक सार्थक कदम माना एवं समय समय पर इसकी मांग उठाते रहे |
उत्तराखंड राज्य के गठन के पीछे कई कारण मौजूद थे | जिनमें से प्रमुख कारण उत्तराखंड का उत्तर प्रदेश के मैदानी क्षेत्रों से भौगोलिक एवं सांस्कृतिक रूप से भिन्न होना था | जहां पहाड़ी क्षेत्र होने के कारण सरकार की विकास योजनाएं पहाड़ों तक नहीं पहुंच पा रही थी | वही खान-पान , रहन-सहन एवं भाषा बोली के आधार पर यह क्षेत्र उत्तर प्रदेश के अन्य भागों से भिन्न था |
पहाड़ी क्षेत्र होने के कारण आधारभूत संरचनाओं का विकास नहीं हो पाया | तथा इसने जनता में एक आक्रोश की भावना पैदा की |
उत्तराखंड राज्य की स्थापना कोई एकाएक हुई घटना नहीं थी | बल्कि लंबे समय तक चल रहे राजनीतिक आंदोलनों का परिणाम थी | जिसका कारण प्रशासनिक शिथिलता एवं स्थानीय लोगों का प्रशासन से अलगाव था |
यहां पर नियुक्त अधिकारी अपनी नियुक्ति को एक सजा मानते थे | इसलिए विकास को प्रमुखता देने के बजाय , समय व्यतीत करने पर बल दे देते थे | अस्पताल तो खोले गए थे | किंतु वहां पर दवाइयों और चिकित्सकों का अभाव होता था | कागजों पर स्कूल , बिना भवनो एवं शिक्षकों के खोले जाते थे |
सरकारों द्वारा चलाई जा रही विकास योजनाओं का क्रियान्वयन सही प्रकार से नही हो पाता था | वहीं राजधानी से अधिक दूर होने के कारण स्थानीय शासन प्रशासन एवं नीतियों से अनभिज्ञ थी| जनप्रतिनिधियों द्वारा क्षेत्र के सभी निवासियों का उपयोग केवल वोट बैंक के रूप में होता था |
यहां की प्राकृतिक संसाधनों का विस्तृत पैमाने पर विदोहन किया गया | किंतु किसी भी उद्योग के स्थानीयकरण नहीं किया गया | जिस कारण स्थानीय लोगों के समक्ष रोजगार एक प्रमुख समस्या बनकर खड़ा हुआ | तथा दीन हीन कृषि आजीविका चलाने में सक्षम नहीं थी | तो फलस्वरूप स्थानीय लोगों एवं युवाओं ने मैदानों की तरफ पलायन करना शुरू किया | तथा हरे-भरे आवाद पहाड़ विरान होने लगे |
सरकार ने विकास कार्य के लिए जैसे सड़क निर्माण आदि के लिए पहाड़ों में अनेक विस्फोट किए | इन विस्फोटों ने भूस्खलन के रूप में एक नई समस्या को जन्म दिया | इसके अलावा सूखा बाढ़ एवं भूकंप से क्षेत्र निरंतर प्रभावित रहा था |
आपदा के समय सरकार द्वारा कोई त्वरित राहत जनता तक नहीं पहुंचाई जाती थी | और ना ही आपदा प्रबंधन के लिए विशेष नीति बनाई गई थी | इसलिए प्रशासनिक अनदेखी ने ही जनता में असंतोष पैदा किया | एवं जनता आंदोलन के लिए मजबूर हुई |
उत्तराखंड भारत का एक सीमांत क्षेत्र था | जिसका अपना एक सामरिक महत्व था | इस महत्व को जनता ने 1962 के भारत – चीन युद्ध में भी महसूस किया था | इसलिए यहां पर मजबूत आधारभूत संरचना एवं एक प्रशासनिक तंत्र का होना आवश्यक था | जो आवश्यकता पड़ने पर अपने कार्य को सुचारु रुप से कर सकें| इसलिए जनता को पृथक राज्य ही अंतिम विकल्प दिखा |