उत्तराखंड की नदियां भाग – 1 || अलकनंदा नदी तंत्र ||
उत्तराखंड की नदियां क्योंकि हिमालय में किसी ग्लेशियर से निकलती है। इसलिए ये सदानीरा है |उत्तराखंड की नदियों में से प्रमुख रूप से अलकनंदा नदी V आकार की घाटी बनाती है । उत्तराखंड की नदियों को निम्न प्रकार से प्रमुख नदी तंत्रों में बांटा गया है। अलकनंदा नदी तंत्र भागीरथी नदी तंत्र ,काली नदी तंत्र , यमुना नदी तंत्र, पश्चिमी रामगंगा नदी तंत्र ।
1 – अलकनंदा नदी तंत्र
अलकनंदा नदी सतोपंथ ग्लेशियर से निकलती है | सतोपंथ ग्लेशियर तथा भागीरथी ग्लेशियर मिलकर के अल्कापुरी बॉक ग्लेशियर का निर्माण करती है | तथा यहीं से अलकनंदा अपने वास्तविक स्वरूप में आती है |
सतोपंथ ग्लेशियर के नजदीक सतोपंथ ताल है | यह त्रिकोण आकार का है |
उसके पश्चात अलकनंदा में वसुधारा प्रपात एवं ऋषिगंगा मिलती है | तथा उनके पश्चात केशवप्रयाग में अलकनंदा और सरस्वती नदी का संगम है | सरस्वती नदी पर भीमपुल स्थित है
इसके पश्चात अलकनंदा बद्रीनाथ की तलहटी से होकर बहती है | तथा बद्रीनाथ मंदिर इसके बाएं तट पर स्थित है |
इसके पश्चात अलकनंदा हनुमान चट्टी तक पहुंचती है | जहां पर एक मंदिर है (जोशीमठ – नरसिंह मंदिर एक हाथ पतला भविष्य बद्री )
गोविंदघाट में पुष्पवती नदी अलकनंदा से मिलती है | लक्ष्मण गंगा या हेमगंगा पुष्पावती की एक सहायक नदी है |
अलकनंदा अपने पहले प्रयाग विष्णुप्रयाग की ओर आगे बढ़ती है | यहां पर अलकनंदा का संगम कनकलुख श्रेणी से निकलने वाली पश्चिमी धौलीगंगा से होता है। पंच प्रयाग में से विष्णुप्रयाग एकमात्र प्रयाग है | जहां पर कोई शहर नहीं बसा है। यहां पर जय – विजय नामक दो पर्वत है |
विष्णुप्रयाग के बाद अलकनंदा से तुंगनाथ श्रेणी से निकलने वाली वाली बालिख्या नदी मिलती है | पंच केदार ओं में से एक तुंगनाथ उत्तराखंड में सर्वाधिक ऊंचाई पर स्थित मंदिर है।
इसके पश्चात अलकनंदा में छोटी-छोटी नदियां जैसे पाताल गंगा, विरही गंगा एवं गरुड़गंगा मिलती है ।
अब अलकनंदा दूसरे प्रयाग नंदप्रयाग में नंदाघुघुटी से निकलने वाली नंदाकिनी नदी से मिलती है। माना जाता है कि यह स्थान नन्दो की राजधानी थी ।
नंदप्रयाग के पश्चात अलकनंदा तीसरे प्रयाग कर्णप्रयाग की ओर बढ़ती है | तथा यहां पर पिंडर नदी से मिलती है|
आटागाड़ नदी पिंडर नदी की एक सहायक नदी है |
कर्णप्रयाग में माना जाता है , कि कर्ण को भगवान सूर्य से यहां पर कवच एवं कुंडल प्राप्त हुए थे | यहां पर कर्ण मंदिर , कृष्ण कर्ण मंदिर तथा उमा देवी मंदिर स्थित है |
उपरोक्त तीनों प्रयाग चमोली जनपद में है |
इसके पश्चात अलकनंदा चौथे प्रयाग रुद्रप्रयाग की ओर आगे बढ़ती है | यहां पर अलकनंदा का संगम चौराबाड़ी ताल से निकलने वाली मंदाकिनी नदी से होता है |
मंदाकिनी सोनप्रयाग में सोनगंगा या वसुकि नदी से मिलती है | तथा कालीमठ में इसका संगम दूधगंगा या मधुगंगा से होता है |
रुद्रप्रयाग में अनेक रुद्रमंदिर स्थित है | इसलिए प्राचीन ग्रंथों में इस क्षेत्र को रुद्रावत या रुद्रक्षेत्र कहा जाता था |
रुद्रप्रयाग में नारद ने रुद्र की तपस्या की थी |एवं यहीं पर नारद को संगीत शास्त्र का ज्ञान हुआ था।
रुद्रप्रयाग के पश्चात अलकनंदा श्रीनगर होते हुए पांचवे प्रयाग देवप्रयाग की ओर बढ़ती है | तथा देवप्रयाग में इसका संगम भागीरथी नदी से होता है। भिलंगना नदी भागीरथी की प्रमुख सहायक नदी है ।
माना जाता है कि देवप्रयाग को देवशर्मा नामक ऋषि ने बसाया था | इसे सुदर्शन प्रयाग के नाम से भी जाना जाता है। एवं पौराणिक गाथाओं के अनुसार इस स्थान पर महर्षि दधीचि ने इंद्र को अपनी अस्थियां दी थी । इसलिए इसे इंद्र प्रयाग भी कहा जाता है ।
यहां पर दो कुंड भी स्थित हैं । जिनमें भागीरथी की ओर से ब्रह्मकुंड तथा अलकनंदा की ओर से वशिष्ठ कुंड है । अलकनंदा को बहु एवं भागीरथी को सास कहा जाता है |
अपने उद्गम स्थल से 195 किलोमीटर बहने के बाद अलकनंदा नदी देवप्रयाग से गंगा के नाम से जानी जाती है | इसके पश्चात् फूलचट्टी नामक स्थान पर गंगा से नयार नदी मिलती है |
ऋषिकेश से चंद्रभागा तथा रायवाला में सौंग नदी से मिलते हुए गंगा हरिद्वार में उत्तराखंड से बहार चली जाती है | देवप्रयाग से हरिद्वार तक गंगा की कुल लम्बाई 96 किलोमीटर है |
नोट – अलकनंदा उत्तरखंड की सबसे अधिक जलप्रवाह वाली नदी है | ये V आकर की घाटी बनती है | एवं सर्वाधिक यह संकरी घाटियों से होकर बहती है |