उत्तराखंड का पृथक राज्य आंदोलन
सबसे पहले 1923 में गवर्नर को एक ज्ञापन के माध्यम से पृथक राज्य के रूप में उत्तराखंड के गठन के लिए एक ज्ञापन दिया गया |
1938 में श्रीनगर के सम्मेलन में जवाहरलाल नेहरू ने पृथक राज्य के रूप में उत्तराखंड के गठन की सिफारिश स्वयं की थी |
1950 में कांगड़ा में उत्तराखंड एवं हिमाचल के लोगों ने एक संयुक्त सम्मेलन बुलाया था | तथा यहीं पर पर्वतीय विकास परिषद का गठन किया गया |
1968 में रामगढ़ में दयाकृष्ण पांडे की अध्यक्षता में पर्वतीय राज्य परिषद का गठन किया गया | इस परिषद ने उत्तराखंड राज्य की मांग को आंदोलन में परिवर्तित करने पर बल दिया |
1970 में उत्तराखंड राज्य की मांग को मजबूती से प्रस्तुत करने के लिए | पुनः कामरेट पी0 सी0 जोशी ने कुमाऊं मोर्चों का गठन किया |
1973 में दो सांसद प्रताप सिंह एवं नरेंद्र सिंह नेगी ने दिल्ली में लोट क्लब पर धरना दिया |
1972 में उत्तरांचल परिषद का गठन किया गया | तथा 1978 में उत्तरांचल युवा मोर्चा ने बद्रीनाथ से लेकर दिल्ली तक पैदल यात्रा की |
1979 में पर्वतीय जन विकास सम्मेलन का आयोजन मसूरी में किया गया | तथा उत्तराखंड राज्य की मांग को और प्रभावी ढंग से रखने के लिए उत्तराखंड क्रांति दल का गठन किया गया | इसके पहले अध्यक्ष देवीदत्त पंत हुए | उत्तराखंड क्रांति दल ने ही 1992 में उत्तराखंड की राजधानी गैरसैंण बनाने की मांग रखी | एवं काशी सिंह ऐरी द्वारा गैरसैण उत्तराखंड की भावी राजधानी का शिलान्यास किया गया | एवं उनका नाम चंद्रनगर रखा गया |
1988 में सोबन सिंह जीना ने उत्तराखंड अत्यंत परिषद का गठन किया |
1994 में उत्तर प्रदेश की सपा सरकार ने पृथक राज्य के गठन हेतु , कौशिक समिति का गठन किया | इस समिति ने अपनी सिफारिशों में उत्तराखंड राज्य की मांग को स्वीकार किया | तथा इसकी सिफारिश की कि गैरसेंण को भावी राजधानी के रूप में बनाया जाए | इसने उत्तराखंड में तीन मंडलों की भी सिफारिश की थी |
1994 में उत्तर प्रदेश सरकार ने नई आरक्षण नीति लागू की | जिसके तहत सरकारी सेवाओं में 50% पद आरक्षित रखे गए | जिसमें से 27% OBC , 21 % SC , 2 % ST के लिए आरक्षित थे | उत्तराखंड की जनता ने इसका व्यापक स्तर पर विरोध किया | उनका तर्क था , कि 3% जनसंख्या को 27 % सीट देना न्याय संगत नहीं | इसी के विरोध में पौड़ी , उत्तराखंड के तथोवृद्ध नेता इंद्रमणि बडोनी ने आमरण अनशन किया । इंद्रमणि बडोनी को उत्तराखंड का गांधी कहा जाता है ।
उत्तराखंड आंदोलन के क्रम में 1 सितंबर 1994 को उधम सिंह नगर के खटीमा में पुलिस ने आंदोलनकारियों पर गोलियां चलाई | जिसमें कई लोग शहीद हुए | इसके विरोध में 2 सितंबर 1994 को धरना प्रदर्शन और हड़ताल का आयोजन हुआ | तथा यहां पर भी खटीमा कांड के घटनाक्रम को दोहराया गया | तथा इसमें न केवल आंदोलनकारी शहीद हुए | बल्कि एक पुलिस अधिकारी उमाकांत त्रिपाठी भी मारे गए |
2 अक्टूबर 1994 को दिल्ली में महारैली का आयोजन किया गया | जिसमें संपूर्ण उत्तराखंड की जनता को दिल्ली की रैली में शामिल होने के लिए आह्वान किया गया | उत्तर प्रदेश की सरकार ने एक पूर्व नियोजित षड्यंत्र के तहत दिल्ली जा रहे , आंदोलनकारियों को मुजफ्फरनगर के रामपुर तिराहे पर रोका गया | पुलिस द्वारा लोगों पर गोलियां चलाई गई | जहां एक ओर उस दिन विश्व में शांति एवं अहिंसा के पुजारी महात्मा गांधी को राजघाट पर श्रद्धांजलि दी जा रही थी वहीं यूपी के प्रशासनिक तंत्र ने इस कृत्य को अंजाम देकर लोकतंत्र की मर्यादा से खेलकर लोकतंत्र की को निम्न स्तर तक गिरा दिया था | इस घटना को पूरे विश्व में क्रूर शासक की क्रूर साजिश कहा गया|
इसी क्रम में अक्टूबर 1995 में उत्तराखंड के फील्ड मार्शल दिवाकर भट्ट ने श्रीनगर में अलकनंदा नदी के मध्य श्रीयंत्र टापू पर अनशन किया | किंतु नवंबर 1995 में पुलिस कार्यवाही में यहां पर भी कुछ लोग शहीद हुए | इसके पश्चात दिवाकर भट्ट ने टिहरी में स्थित खैट पर्वत को अपना धरना स्थल चुना ।
इसी क्रम में एच0 डी0 देवगौड़ा ने लाल किले से उत्तराखंड राज्य के निर्माण की घोषणा की तथा 1998 में केंद्र में वाजपेई सरकार अस्तित्व में आई | उन्होंने उत्तर प्रदेश के पुनर्गठन से संबंधित विधेयक यूपी की विधानसभा में भेजा | यह विधेयक पास होकर के वापस केंद्र को भेजा गया |
27 जुलाई को उत्तर प्रदेश पुनर्गठन विधेयक लोकसभा में रखा गया | 1 अगस्त को लोकसभा तथा 10 अगस्त को राज्यसभा से पारित होने के बाद | 28 अगस्त को राष्ट्रपति ने इस पर हस्ताक्षर किए । तथा भारतीय गणतंत्र के 27 वें राज्य के रूप में 9 नवंबर सन 2000 को उत्तराखंड राज्य अस्तित्व में आया | इसकी अस्थाई राजधानी देहरादून को बनाया गया |
सरकार ने अस्थाई राजधानी के गठन हेतु 2001 में एक राजधानी आयोग का गठन किया | 2003 में इसके अध्यक्ष जस्टिस वीरेंद्र दीक्षित को बनाया गया |
2004 में 13 स्थानों में से किसी भी एक स्थान को उत्तराखंड की राजधानी बनाने के लिए बाबा मोहन उत्तराखंडी ने आमरण अनशन किया | एवम 34 दिनों की भूख हड़ताल के पश्चात उनकी मृत्यु हो गयी |
अंतरिम सरकार का गठन
9 नवंबर सन 2000 को उत्तराखंड राज्य के गठन के पश्चात , एक अंतरिम विधानसभा एवं एक अंतरिम सरकार का गठन किया गया | यूपी विधानसभा के क्षेत्र से चुने गए 22 विधायकों एवं विधान परिषद के 9 सदस्यों को मिलाकर अंतरिम विधानसभा का गठन हो रहा था | किंतु इसी समय एक सदस्य का कार्यकाल पूरा होने के कारण अंतरिम विधानसभा में कुल 30 सदस्य थे | इस विधानसभा में बीजेपी का बहुमत था | इसलिए नित्यानंद स्वामी उत्तराखंड के पहले मुख्यमंत्री की शपथ पहले राज्यपाल सुरजीत सिंह बरनाला ने दिलाई | नित्या नंद स्वामी की कैबिनेट कैबिनेट में 9 मंत्री तथा 4 राज्य मंत्री थे |
1 जनवरी 2007 को उत्तराँचल का नाम बदलकर उत्तराखंड किया गया | 1 जनवरी 2010 को उत्तराखंड ने संस्कृत को अपनी दूसरी राजभाषा का दर्जा दिया |
उत्तराखंड का उच्च न्यायलय नैनीताल में स्थापित किया गया | इसके पहले मुख्य न्यायधीश अशोक अभेंद्र देसाई थे | यह देश का 20 वाँ उच्चन्यालय था |